ब्रिटिश काल में, निजी कंपनियों पर नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा परामर्श इंजीनियरों की नियुक्ति की जाती थी। जब सरकार रेलवे का निर्माण कार्य करती थी, तो उन्हें सरकारी निरीक्षक के रूप में नामित किया जाता था ।
1883 में उनको वैधानिक रूप से मान्यता दी गई।
भारतीय रेल अधिनियम, 1890 के अंतर्गत संरक्षा नियंत्रण प्राधिकरण की शक्ति रेलवे बोर्ड के पास बनी रही।
बिहटा दुर्घटना के बाद 1939 में गठित पेसिफिक लोकोमोटिव समिति की अनुशंसा के आधार पर सरकार ने 1941 में रेलवे बोर्ड से रेलवे निरीक्षणालय को अलग कर दिया।
रेलवे के मुख्य सरकारी निरीक्षक का पद सृजित किया गया, जिसके माध्यम से सरकारी निरीक्षक रिपोर्ट करेंगे।
निरीक्षणालय को संचार विभाग के अधीन रखा गया। 1942 से निरीक्षणालय को डाक और वायु विभाग के अधीन कर दिया गया और उसके बाद नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन कर दिया गया।
1979 से पदनाम रेल संरक्षा आयुक्त से मुख्य रेल संरक्षा आयुक्त तथा अतिरिक्त रेल संरक्षा आयुक्त से रेल संरक्षा आयुक्त कर दिया गया।
आयुक्तों की भर्ती भारतीय रेलवे के अधिकारियों में से समामेलन के आधार पर की जाती है। उन्हें रेल मंत्रालय से प्रतिनियुक्ति पर तैनात उप आयुक्तों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।